"शर्म करो": हाउसकीपिंग कर्मचारीयो का विरोध प्रदर्शन का तीसरा दिन। एडमिन और ब्लसप्रिंग से अब तक कोई बातचीत नहीं
- The Edict
- Sep 2
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हाउसकीपिंग स्टाफ कर्मचारियों का प्रदर्शन 30 अगस्त, 2025 को अपने तीसरे दिन में प्रवेश कर चुका है, जिसमें साइट पर 70 से अधिक कर्मचारी अपनी तीन मांगों के लिए लड़ रहे है।
दिन की शुरुआत कर्मचारियों का शो-कॉज़ नोटिस के जवाब से हुई जो उन्हें गुरुवार 28 अगस्त को दिया गया था जिसकी अंतिम तिथि 30 अगस्त, शाम 6:00 बजे थी। नोटिस ने विरोध प्रदर्शन समाप्त करने की मांग की क्योकि उन्हें लगा की प्रदर्शन “कारणहीन” है। एडवोकेट कपिल बाल्यान के कहने पर एक उत्तर तैयार किया गया जिसमें यह रेखांकित किया गया कि उनका शांतिपूर्ण प्रदर्शन “[हमारे] लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार के अनुसार” है। साथ ही जवाब में कर्मचारियों की काम करने की खराब परिस्थितियों पर भी जोर दिया गया और मांगों को फिर से दोहराया गया।
हालाँकि, बलुस्प्रिंग इंटरप्राइजेज Bluespring Enterprise के एचआर विभाग HR Department ने सामूहिक प्रस्तुति को ठुकरा दिया और कर्मचारियों को व्यक्तिगत रूप से जवाब देने पर ज़ोर दिय। एडवोकेट बाल्यान ने स्पष्ट किया कि चाहे HR इसे स्वीकार करने से इनकार कर दे, प्रस्तुत उत्तर कानूनी रूप से मान्य है।उन्होंने कहा, “अगर कोई नोटिस लेने से इनकार करता है, तो भी इसे कानूनी रूप से दिया गया माना जाता है।” साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट, ईमेल या कंपनी के दफ्तर पर चिपकाकर भी दिया जा सकता है।
शो-कॉज़ नोटिस कर्मचारियों को व्हाट्सऐप के माध्यम से भेजे गए, जहाँ बलुस्प्रिंग के सहयोगियों ने उन्हें व्यक्तिगत शिकायत दर्ज कराने के लिए मनाने की कोशिश की।इसके जवाब में कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से तैयार उत्तर व्यक्तिगत रूप में भेजा। संभावित अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचने के लिए, कुछ छात्र, शिक्षकों और कर्मचारियों ने सोनीपत पुलिस के डिप्टी कमिश्नर के पास जाकर तैयार जवाब की एक कॉपी जमा करने की कोशिश की, ताकि उनके शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार की पुष्टि हो सके। जवाब की एक फिजिकल कॉपी कंपनी के दफ्तर पर भी चिपका दी गई और सबूत के तौर पर वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई।
इसी बीच विश्वविद्यालय के अंदर काम कर रहे लगभग 50 कर्मचारियों पर प्रशासन द्वारा दबाव डाला गया ताकि वे प्रदर्शन में शामिल न हों, ऐसा एक AUSG काउंसलर ने बताया। उन्होंने कहा, “प्रशासन डराने के लिए कौन से तरीके अपना रहा है, हमें इसकी पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन हमारे पास वीडियो सबूत हैं जिनमें प्रशासन के लोग कर्मचारियों को गाड़ियों में हाईवे से लाकर गेट नंबर 3 के रास्ते कैंपस में दाखिल करा रहे हैं।”
इंशा हुसैन (UG ’26) ने कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए प्रशासन की कोशिशों के बारे में बताया: “हमने देखा कि गेट 2 पर 3 महिला कर्मचारी दूसरी निजी एजेंसी के माध्यम से भर्ती थीं।उन्होंने यूनिफॉर्म नहीं पहनी थी, और उन्होंने कल काम किया था और आज भी करने वाली थीं। उन्हें मजदूरी नहीं मिली थी। जब हमने उन्हें यह बताया कि पैसे मिलने की कोई गारंटी नहीं है और उन्हें अपने विरोध प्रदर्शन के बारे में भी जानकारी दी, तो वे कैंपस छोड़कर चली गईं। प्रशासन बिना उचित वेतन दिए, काम करवाने के लिए दबाव बनाने के कई तरीके इस्तेमाल कर रहा है।”
हुसैन और रज़ीन आयेश (UG ’26) ने एक अन्य घटना का भी ज़िक्र किया जहाँ Bluspring के सहयोगियों ने बिना अनुमति महिला छात्रों की फ़िल्म बनाई; पिछली रात कैंपस के अंदर रुकी छात्राओं ने भी ऐसे ही दावे किए और यह भी आरोप लगाया कि सवाल करने पर सहयोगियों ने उन पर अनुचित टिप्पणियां कीं और उन्हें अपने ऑफिस में अकेले मिलने के लिए कहा।
आयेश ने महिला हाउसकीपिंग कर्मचारी के साथ की गई उत्पीड़न की घटनाओं का उल्लेख करते हुए सवाल उठाया:
“अगर वे हमारे साथ ऐसा बर्ताव करते हैं, तो क्या आप सोच सकते हैं कि वे हमारी दीदियों के साथ कैसा बर्ताव करते होंगे?”
उन्होंने आगे कहा, “सभी औपचारिक तंत्र ढह चुके हैं। इनमें से कोई भी कर्मचारियों की पहुँच में नहीं रही हैं। इसीलिए हम यहाँ बैठकर उनका समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि अंदर कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है।”
इन सहयोगियों ने प्रदर्शनकारियों से 3 बजे मिलने का वादा किया था पर वे नहीं आए।
शाम में कई कर्मचारियों ने मनमाने तरीके से नौकरी से हटाने और काम करने की बेहद खराब परिस्थितियों के बारे में बताया।ओम*, जिन्हें रीढ़ की हड्डी की समस्या है, ने बताया कि सफ़ाईकर्मी होने के बावजूद उनसे अब भी भारी बोझ उठाने के लिए मजबूर किया जाता है।कर्मचारियों ने अपने आर्थिक दबाव के बारे में भी बताया।एक ने कहा, “मैं यहाँ 11 साल से काम कर रहा हूँ, लेकिन वे छोटी-छोटी वजहों से मेरी तनख्वाह से ₹200–₹300 काट लेते हैं। हम कई सालों से तनख्वाह बढ़ाने के लिए कह रहे हैं, पर वे हमारी बात को कभी गंभीरता से नहीं लेते।” दूसरे ने जोड़ा, “मैं ₹12,000–13,000 कमाता हूँ। हमने मैनेजर से अपनी मांगें सुनने को कहा, पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया। छात्रों ने हमारी बात सुनी।”
कर्मचारियों के बयानों के बाद, पूर्व छात्रा गौरी कोलाल Gowri Kolal (UG ’22) ने कर्मचारियों के प्रति लगातार हो रहे दुराचारों के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि वेतन और कर्मचारियों के साथ व्यवहार से जुड़े जो मुद्दे अब सामने आ रहे हैं, वे पहले भी मौजूद थे। उन्होंने प्रशासन द्वारा थर्ड-पार्टी कॉन्ट्रैक्टिंग (third party contracting) से पैदा हुई नौकरी की असुरक्षा पर भी जोर दिया, जो 'हायर एंड फायर' (hire-and-fire) मॉडल पर चलती है। उन्होंने कहा कि आसावरपुर के लोगों को उनकी ज़मीन के बदले नौकरी और विकास का वादा किया गया था, लेकिन जो रोज़गार दिए गए वे अस्थायी (contractual) और अनिश्चित हैं। उन्होंने छात्रों से सोचने को कहा कि ज़मीन, शिक्षा और विकास की बातें आपस में कैसे जुड़ी हुई हैं।
उन्होंने आगे कहा: “हरियाणा में रहने वाले लोग जानते हैं कि अशोका जिस जमीन पर बनी है, वह किसानों से ज़ब्त की गई थी और उस समय उन्हें रोजगार और विकास का वादा किया गया था। यह समस्या सिर्फ अशोका तक ही सीमित नहीं है, हरियाणा में कई निजी विश्वविद्यालय किसानों की ज़मीन पर ही बने हैं। हरियाणा सरकार इन यूनिवर्सिटियों को किसानों की ज़मीन बहुत सस्ते में दे रही है। वह नौकरी और मजदूरी कहाँ हैं जो किसानों को वादा की गई थी? आसपास के बच्चों को कभी यहाँ शिक्षा तक नहीं मिली। वे इसे प्रगति कहते हैं लेकिन यह प्रगति किसके लिए है?”
लेख लिखे जाने तक, प्रदर्शनकारी कर्मचारी और उनका समर्थन कर रहे छात्र गेट 1 के बाहर लगातार खड़े थे, यह उनकी तीसरी रात थी।
(*Pseudonyms दिए गए हैं पहचान रक्षक करने के लिए*)
यह लेख दो दिन पुराना है







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